जन्म और माता पिता-birth and parentage
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 13 November 1780 A.D को गुजरांवाला (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ। महाराज रणजीत सिंह को शेर-ए-पंजाब कहा जाता है।उनके पिता का नाम महासिंह था जो सुकरचकिया मिसल के नेता थे। रणजीत सिंह के बचपन का नाम बुध सिंह था।उनकी माता का नाम माता राज कौर था। Maharaja रंजीत सिंह की माँ जींद के सरदार गजपति सिंह की पुत्री थी जो अपने इलाके में माता मलवां के नाम से प्रसिद्ध थी, क्योंकि जींद के इलाका मालवा के इलाके में आता है।
Maharaja Ranjeet Singh के जन्म के संबंध में इतिहासकारो में कुछ मतभेद है। इतिहासकार James prinsep ,Sayed Muhammad latif, sehmat Ali जैसे इतिहासकार रणजीत सिंह का जन्म 2 November 1780 A.D को हुआ था। इन इतिहासकारो ने अपना आधार उन शब्दों को बनाया है जो महासिंह की हवेली के एक कमरे में लिखे गए है।परन्तु Sohan LAL Suri, Diwan amaranth जो maharaja Ranjeet Singh के दरबारी थे उन्होंने रणजीत सिंह का जन्मकाल 13 नवंबर 1780 को ही बताया है।
Childhood and education
Ranjeet Singh अपने माता पिता की इकलौती संतान थे।उनका पालन पोषण बड़े प्यार से किया गया था। बचपन में एक बार उन्हें भयंकर चेचक का रोग हो गया था, इस बीमारी के कारण उनकी बाई आंख हमेशा के लिए खराब हो गयी थी।पाँच वर्ष की उम्र में उन्हें पढ़ाई करने के लिए गुजरांवाला में भाई भाग सिंह के पास पड़ने के लिए भेजा गया, परन्तु रणजीत सिंह का मन नही लगा इसलिए वह सारी उम्र अनपढ़ रहे।पढ़ाई की जगह रंजीत सिंह का मन युद्ध कला सीखने में अधिक करता था। बचपन में ही रणजीत सिंह उच्चकोटि के घुड़सवार, और तलवारबाज बन गए। Ranjeet Singh की बहादुरी देख कर उनके पिता महासिंह ने एक कही थी
“गुजरांवाला का राज मेरे बहादुर पुत्र रणजीत सिंह के लिए काफी नही होगा। वह एक महान योद्धा बनेगा।"बहादुरी के कारनामे( Acts of bravery)
Ranjeet Singh बचपन से ही बहादुर बन गया था। बचपन में 12 वर्ष की उम्र में रणजीत सिंह अपने पिता महा सिंह के साथ लड़ाई करने गया। इस लड़ाई में रणजीत सिंह के पिता बीमार पड़ जाते है और युद्ध की कमान Ranjeet Singh के हाथों में आ जाती है। इस युद्ध मे रणजीत ने साहिब सिंह भंगी को हराया। इस जीत के से महासिंह बहुत खुश हुए। इस जीत से ही खुश होकर महासिंह ने अपने पुत्र बुध सिंह का नाम रणजीत सिंह (रण को जीतने वाला) रखा। कुछ समय बाद 1792 ईस्वी महासिंह की मृत्यु हो जाती है।एक बार Ranjeet Singh शिकार खेलते हुए अकेले ही लाडोवाली गांव के पास पहुँच गए। उनके साथी उनसे पीछे रह गए। रणजीत सिंह को अकेला देखकर चट्ठा कबीले का सरदार हसमत खान एक झाड़ी में छुप कर बैठ गया।वह महासिंह के हाथों हुई अपनी हार का बदला लेना चाहता था। जब रणजीत सिंह उस झाड़ी के पास पहुंचा तब हसमत खान ने रणजीत सिंह पर जोरदार हमला किया। इस हमले में Ranjeet Singh तो बच जाता है पर उसने अपनी कुशलता से जोरदार तरीके से हसमत खान पर जवाबी हमला किया जिससे उसकी मौत हो जाती है।
विवाह(marriage)-
Ranjeet Singh का विवाह 1796 ईस्वी में कन्हइया मिसल के सरदार जय सिंह की पोती महताब कौर के साथ कि गयी। 1798 में रणजीत सिंह का नक्काई मिसल के सरदार खजाना सिंह की पुत्री राज कौर के साथ दूसरा विवाह हुआ।
The Triune Regency
तिकड़ी की सरपरस्ती ( The triune Regency)- 1792 ईस्वी में रणजीत सिंह के पिता महासिंह की मौत हो गयी थी । इस समय रंजीत सिंह की उम्र 12 साल की थी, इसलिय राज-प्रबंध का कार्य माता राज कौर को सौंपा गया। राज कौर का प्रशासनिक कामों में कोई रुचि नही थी, इसलिए उसने शासन प्रबंध का काम अपने दीवान लखपत राय को सौंप दिया। Ranjeet Singh की सास सदा कौर भी शासन व्यवस्था में दिलचस्पी रखती थी। इस तरह 1792 से लेकर 1797 ईस्वी तक रंजीत सिंह का शासन व्यवस्था तीन लोग - राज कौर, दीवान लखपत राय, सदा कौर के हाँथो में थी।
तिकड़ी की सरपरस्ती का अंत ( The End of Triune Regency)- जब रणजीत सिंह 17 साल के हुए तब रणजीत सिंह ने शासन व्यवस्था अपने हाँथो में ले ली । इस तरह रंजीत सिंह ने तिकड़ी की सरपरस्ती का अंत किया।
तिकड़ी की सरपरस्ती का अंत ( The End of Triune Regency)- जब रणजीत सिंह 17 साल के हुए तब रणजीत सिंह ने शासन व्यवस्था अपने हाँथो में ले ली । इस तरह रंजीत सिंह ने तिकड़ी की सरपरस्ती का अंत किया।
कुछ इतिहासकारो का विचार है रंजीत सिंह ने शासन व्यवस्था अपनी माँ की हत्या कर के प्राप्त की थी। परन्तु यह बात बिल्कुल गलत है, अगर रणजीत सिंह ने अपनी माँ की हत्या की होती तो रंजीत सिंह के समकालीन इतिहासकार सोहन लाल सूरी और दीवान अमरनाथ इस महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख करते। बूटा शाह ( रंजीत सिंह का समय का इतिहासकार) जो अंग्रेजों के यहाँ नोकरी करता था, उसके अनुसार रंजीत सिंह ने शासन व्यवस्था अपनी माँ के कहने पर ही अपने हाँथो में ली थी।
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