पंजाब के बंटवारे का कारण punjab partition 1947 in hindi

 पंजाब के बंटवारे के कारण।Due to the partition of Punjab.

1.1919 का एक्ट-

1919 के एक्ट के अनुसार मुसलमानों को विधान परिषद के चुनाव में अलग से नुमाइंदगी का अधिकार दे दिया गया। मुसलमानों को यह अधिकार देकर अंग्रेजों ने असल में धार्मिक फूट के बीज बीज दिए थे। इस एक्ट ने सिख धर्म में निराशा की लहर पैदा कर दी थी क्योंकि उनकी भी अलग से नुमाइंदगी का अधिकार स्वीकार नहीं किया गया था।

Punjab partition 1947

2. लखनऊ पैक्ट 1916 ईस्वी

1916 ईस्वी में लखनऊ के स्थान पर मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच एक समझौता हुआ था जो इतिहास में लखनऊ पैक्ट के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस पैक्ट के अनुसार कांग्रेस ने मुसलमानों के चुनाव में अलग से नुमाइंदगी के अधिकार को स्वीकार कर लिया। पंजाब की लेजिसलेटिव काउंसिल में मुसलमानों के लिए 50% सीट आरक्षित कर दी गई।पंजाब के चीफ खालसा दीवान ने इस पैक्ट का जोरदार विरोध किया था।चीफ खालसा दीवान का कहना था कि पंजाब में सिखों के लिए कम से कम 34% सीटें आरक्षित जरूर होनी चाहिए। असल में इस पेक्ट के कारण देश में धार्मिक अलगावाद को काफी उत्साहित किया।

3. 1919 ईस्वी का एक्ट-

पंजाब में रहने वाले सिख लगातार पंजाब लेजिसलेटिव काउंसिल में 33% सीट सुरक्षित किए जाने की मांग कर रहे थे।सिख समाज की यह मांग इस बात पर आधारित थी कि भारतीय फौज में उनकी गिनती मुसलमान तथा हिंदुओं के मुकाबले अधिक थी। इसके अलावा पंजाब में वह लगान और पानी के कर का 40% हिस्सा सरकार को देते थे। इसलिए जब सरकार ने 1919 ईसवी का एक्ट पास किया तो उसमें सिख समाज की अलग से नुमाइंदगी का अधिकार स्वीकार कर लिया गया था परंतु पंजाब लेजिसलेटिव काउंसिल में उनके लिए केवल 19% सीटें आरक्षित की गई जबकि वह 33% सीटों की मांग कर रहे थे। इसलिए सिख समाज ने इस एक्ट को भी अस्वीकार कर दिया। पर इस एक्ट के कारण पंजाब में रहने वाले सिखों को अलग से नुमाइंदगी का अधिकार देकर अंग्रेज ने पंजाब की अलगाववादी विचारधारा को और बढ़ा दिया।

4. साइमन कमीशन की रिपोर्ट 1930 ईस्वी-

1919 के एक्ट का जायजा लेने के लिए ब्रिटेन की सरकार ने 1927 ईस्वी में साइमन कमीशन को भारत में भेज दिया था। इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट 7 जून 1930 ईस्वी को पेश की थी। पंजाब के संबंध में कमीशन का कहना था कि इस प्रांत में मुसलमानों की बहु समिति को समाप्त नहीं किया जा सकता और ना ही सिखों को पंजाब लेजिसलेटिव काउंसिल में 30% सीट आरक्षित दी जा सकती हैं।पंजाब में सिख मुसलमानों की बहु समिति अधीन रहने के लिए तैयार नहीं थे जिस कारण से सीखो और मुसलमानों के बीच नफरत की धारा बहने लगी।

5. कम्युनल अवार्ड 1932 ईस्वी-

पहली और दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस में जो लंदन में हुई थी इस कॉन्फ्रेंस में चुनाव के संबंध में कोई समझौता नहीं हो पाया था। क्योंकि सिख पंजाब लेजिसलेटिव काउंसिल में 30% आरक्षण की मांग कर रहे थे जबकि मुस्लिम लीग उन्हें 19% से अधिक सीट देने के हक में नहीं थी।इस मामले को निपटाने के लिए इंग्लैंड के प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने 16 अगस्त 1932 ईस्वी को कम्युनल अवार्ड की घोषणा कर दी थी। इस अवार्ड के अनुसार पंजाब के लेजिसलेटिव काउंसिल में मुसलमानों के लिए 51.42% सीट, हिंदुओं के लिए 27.42 तथा सिखों के लिए 18.85 सीटें आरक्षित कर दी गई थी। इस तरह पंजाब में मुसलमानों की बहुत समिति को कायम रखा गया था। सिख समाज ने इस अवार्ड की कड़े शब्दों में आलोचना की थी।

6. 1935 ईस्वी का एक्ट-

1935 ईस्वी के एक्ट के अनुसार भारत में फेडरेशन सरकार की स्थापना का फैसला लिया गया। केंद्र में दो सदन लेजिसलेटिव असेंबली तथा लेजिसलेटिव काउंसिल की स्थापना की गई। कुछ प्रांतों में 2 सदस्य विधान मंडल की स्थापना की गई पर पंजाब में पहले के तरह एक सदन ही रखा गया। इस के मेंबरों के गिनती 93 से बढ़ाकर 175 कर दी गई। इस एक्ट के अनुसार प्रांतों में प्रचलित दोहरे शासन प्रणाली को खत्म कर दिया गया और उत्तरदाई सरकार की स्थापना की गई। इस एक्टर ने धार्मिक अलगाववाद को और बढ़ावा दिया। कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने भी इसका विरोध किया।

7.1937 ईस्वी के चुनाव

-1935 ईस्वी के एक्ट के अनुसार 1937 ईस्वी के शुरू में प्रांत विधानमंडल के चुनाव हुए। कांग्रेस ने 11 प्रांतों में से 7 प्रांतों पर जीत प्राप्त की। परंतु पंजाब में कांग्रेस की स्थिति बहुत खराब थी। कांग्रेस पंजाब में 175 सीटों में से केवल 18 सीटें ही प्राप्त कर सकी। पंजाब में unionist party ने सबसे अधिक 96 सीटों पर जीत प्राप्त की।इस चुनाव के आधार पर यूनियनिस्ट पार्टी की सरकार बनी और सर सिकंदर हयात खां को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया गया। खालसा नेशनल पार्टी भी इस सरकार का हिस्सा थी। अकाली दल ने खालसा नेशनल पार्टी के सरकार में शामिल होने की आलोचना की और आप विरोधी पार्टी कांग्रेस में शामिल हो गई।

8. सिकंदर-जिन्ना एक्ट 1937 ईसवी-

पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी के बनने के बाद धार्मिक झगड़े और बढ़ गए। इसलिए कांग्रेसी जो पंजाब लेजिसलेटिव असेंबली में मुख्य विरोधी पार्टी थी उसने इस सरकार की आलोचना करनी शुरु कर दी।कांग्रेस के प्रभाव को रोकने के लिए 15 अक्टूबर 1937 ईस्वी को मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता तथा पंजाब के मुख्यमंत्री सर सिकंदर हयात खां के बीच में लखनऊ के स्थान पर एक समझौता हुआ। इस समझौते को इतिहास में सिकंदर-जिन्ना पैक्ट भी कहा जाता है। इस समझौते के अनुसार यूनियनिस्ट पार्टी के सभी मुस्लिम मेंबर जो पहले मुस्लिम लीग के मेंबर नहीं थे अब वह मेंबर बन गए थे। पंजाब में होने वाली अगले चुनाव में यूनियनिस्ट पार्टी और मुस्लिम लीग गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया था। इस समझौते के कारण मुस्लिम लिखकर मेंबरों में खुशी की लहर दौड़ गई। असल में यह समझौता भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक बुरा कदम था। इस समझौते के कारण पंजाब में धार्मिक तनाव और बढ़ गया।

9. दूसरा विश्व युद्ध 1939 ईसवी- 

3 सितंबर 1939 ईस्वी को दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ था। अंग्रेजी सरकार ने भारतीयों से पूछे बिना भारत को विश्व युद्ध में शामिल कर दिया था। कांग्रेस पार्टी ने सिर्फ अपना अपमान समझा तथा प्रांतिक मंत्रिमंडल में से इस्तीफे दे दिए। पंजाब में यूनियनिस्ट सरकार और उसमें शामिल खालसा नेशनल पार्टी तथा हिंदू महासभा ने सरकार की हिमायत की थी। चीफ खालसा दीवान भी बिना शर्त के सरकार को मदद देने को तैयार हो गए।

10. पाकिस्तान का मता 1940 ईस्वी-

23 मार्च 1940 को लाहौर में मुस्लिम लीग ने स्वतंत्र पाकिस्तान का मता पास किया था। इस मौके पर मुस्लिम लीग ने नारा लगाया "मारेंगे, मर जाएंगे, पाकिस्तान बनाएंगे”। इस नारे के कारण पंजाब में धार्मिक लड़ाई ने विकराल रूप धारण कर लिया। सिख समाज के सभी राजनीतिक पार्टियों ने पाकिस्तान की मांग का विरोध किया। पाकिस्तान का विरोध करने के लिए लुधियाना के डी .वी. एस. भट्टी ने खालिस्तान के विचार को पेश किया। पंजाब की हिंदू महासभा ने भी अलग देश पाकिस्तान की मांग का विरोध किया।पंजाब के मुख्यमंत्री जो यूनियनिस्ट पार्टी से संबंधित थे उन्होंने भी पाकिस्तान की मांग का विरोध किया। उनका विचार था कि पाकिस्तान के बनने के कारण पंजाब में बहुत खून खराबा होगा।कांग्रेस ने पाकिस्तान के मांग के संबंध में 1940 ईस्वी में कुछ नहीं कहा क्योंकि उनका विचार था पाकिस्तान की मांग की कोई असलियत नहीं है। पाकिस्तान की मांग ने पंजाब में सांप्रदायिक झगड़ों को और बढ़ा दिया तथा धार्मिक फसाद ने पंजाब में विकराल रूप धारण कर लिया।

11 क्रिप्स मिशन-

अंग्रेजों ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए उन्हें कुछ सहुलत देने के लिए क्रिप्स मिशन की नियुक्ति की। यह मिशन 23 मार्च 1942 ईस्वी को इंग्लैंड से भारत पहुंचा। Stafford cripps ने भारत के अलग-अलग राजनीतिक नेताओं से अपनी बातचीत की । उसने भारतीय नेताओं के सामने यह सुझाव रखें

(A.) ब्रिटिश सरकार युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को डोमिनियन स्टेटस देगी।

(B.) युद्ध के बाद नया संविधान बनाने के लिए चुनी गई संविधान सभा कायम की जाएगी। इसमें भारतीय रियासतों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।

C. संविधान को ना मानने वाले प्रांत तथा रियासत को भारत से अलग होने का अधिकार होगा तथा उन्हें भी डोमिनियन स्टेटस दिया जाएगा।

D.युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार भारत की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार रहेगी।

E.भारतीय नेता युद्ध के दौरान सरकार की हर प्रकार से सहायता करेंगे।

कांग्रेस मुस्लिम लीग हिंदू महासभा तथा सिखों ने क्रिप्स मिशन की सिफारिशों को रद्द कर दिया। इस तरह के यह मिशन कामयाब नहीं हो पाया।

12. भारत छोड़ो लहर 1942 ईस्वी-

क्रिप्स मिशन की असफलताओं के बाद अब भारतीयों में स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष के इलावा और कोई चारा नहीं रह गया था। महात्मा गांधी का यह विचार था कि भारत की भलाई इसी में है कि अंग्रेज भारत को उसकी किस्मत पर छोड़कर चले जाएं। अगर अंग्रेज इस बात को नहीं मानेंगे तो भारतीयों को बिना वजह जापानी हमले को सहना पड़ेगा। कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने 14 जुलाई 1942 को भारत छोड़ो का मता पास किया। इस माते की पुष्टि 8 अगस्त 1942 ईस्वी को मुंबई के स्थान पर हुई। महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा लगाया।

ब्रिटिश सरकार ने शुरू से ही इस लहर को कुचलने के लिए दमनकारी नीति अपनाई। 9 अगस्त की सुबह होने से पहले ही सरकार ने महात्मा गांधी और प्रसिद्ध नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।जब इन नेताओं की गिरफ्तारी की खबर फैली तो पूरे देश में भारी हलचल मच गई।नेताओं की रिहाई के लिए देशभर में हड़ताल हुए,जलसे जुलूस निकाले गए तथा राष्ट्रीय गीत गाए जाने लगे। सरकार ने इन आंदोलनकारियों के साथ अमानवीय अत्याचार किए। आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज किया गया तथा कई जगहों पर गोली चलाई गई। भारतीय लोग इस अपमान को सहन नहीं कर सकते थे। वह भड़क गए और उन्होंने सरकारी इमारतों रेलवे स्टेशनों तथा डॉक्टर लाइन को भारी नुकसान पहुंचाया। कई जगह पर भारतीय तिरंगे झंडे को लहराया गया। विद्यार्थियों ने स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए और लहर में बढ़ चढ़कर भाग लिया। औरतों ने इस आंदोलन में अपना पूरा सहयोग दिया। भले ही इस आंदोलन को अंत में अंग्रेजी सरकार कुचलने में सफल रही फिर भी इसने भारत में अंग्रेजी शासन की नींव को हिला कर रख दिया था।

13. आजाद हिंद फौज-

आजाद हिंद फौज की स्थापना 1942 ईस्वी में जनरल मोहन सिंह ने जापान में की थी। इस फौज का उद्देश्य भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराना था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने फौज को बहुत संगठित किया। इस फौज को मजबूत बनाने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी का सहयोग प्राप्त किया। आजाद हिंद फौज में लगभग 70% पंजाबी थे।इससे अंदाजा लगाया जा सकता है इस फौज में पंजाबियों ने मुख्य भूमिका निभाई। जापान का सहयोग मिलने पर इस फौज ने 1947 ईस्वी में भारत के इंफाल क्षेत्र पर हमला कर दिया। आजाद हिंद फौज ने बहुत बहादुरी के कारनामे दिखाए।परंतु दूसरे विश्व युद्ध में जापान के हार होने के कारण तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अचानक हवाई हादसे में मौत हो जाने के कारण आजाद हिंद फौज की स्थिति कमजोर हो गई। इस कारण अंत में आजाद हिंद फौज को अंग्रेजों ने हरा दिया। अंग्रेजों ने आजाद हिंद फौज के 3 बड़े नेता प्रेम कुमार सहगल, गुरबक्श सिंह ढिल्लों तथा शाहनवाज खान पर लाल किले में बगावत का मुकदमा चलाया। उनको फांसी की सजा दी गई। परंतु इन तीनों को छुड़वाने के लिए देश मैं एक बड़ा आंदोलन शुरू हो गया। ब्रिटिश सरकार को इस आंदोलन के आगे झुकना पड़ा और इन तीनों अधिकारियों को छोड़ना पड़ा वास्तव में यह भारतीयों की एक बहुत बड़ी जीत थी।

14. 1945-46 ईसवी के चुनाव-

जुलाई 1945 ईस्वी में इंग्लैंड में हुए चुनाव में लेबर पार्टी को जीत प्राप्त हुई तथा विंस्टन चर्चिल की जगह लॉर्ड एटली के नए प्रधानमंत्री बने। लार्ड एटली भारत की समस्या सुलझाना चाहते थे। इसलिए 1945-46 ईसवी में भारत में प्रांतीय विधानसभा के चुनाव करवाए गए। पंजाब में हुए लेजिसलेटिव काउंसिल के चुनाव मे 175 सीटों में से मुस्लिम लीग ने 73 सीट कांग्रेस ने 51 सीट अकाली पार्टी ने 21 सीट यूनियनिस्ट पार्टी ने तथा आजाद उम्मीदवारों ने 11 सीटें प्राप्त की। इस तरह मुस्लिम लीग ने सबसे अधिक सीटें प्राप्त की । परंतु कांग्रेस,अकाली तथा यूनियनिस्ट ने मिलकर अपनी सरकार बना ली। सर खिजर हयात खां पंजाब के मुख्यमंत्री बने। मुस्लिम लीग के लिए यह एक असहनीय घटना थी। उसने इस गठबंधन की सरकार को तोड़ने के लिए पंजाब में धार्मिक फसाद भड़काने शुरू कर दिए।

15. कैबिनेट मिशन योजना 1946 ईस्वी-

भारत की राजनीतिक समस्या का हल निकालने के लिए लार्ड एटली ने 3 मेंबर वाली कैबिनेट मिशन भारत भेजी। इसमें लाड पैथिक, लॉर्ड लॉरेंस, लॉर्ड स्टेफॉर्ड क्रीपस तथा लॉर्ड अलेक्जेंडर शामिल थे। यह मिशन 23 मार्च 1946 ईस्वी को भारत पहुंचा। इस मिशन में भारतीय नेताओं के साथ बातचीत कर कर 16 मई 1946 ईस्वी को एक ऐलान किया जिसमें मुख्य सिफारिशें निम्नलिखित है।

A. पूरे भारत में एक संघ स्थापित किया जाए जिसमें देशी रियासत और ब्रिटिश भारत के सारे प्रांत शामिल होंगे। इस संघ के पास विदेशी मामले रक्षा तथा संचार साधनों के विभाग होने चाहिए। संघी सरकार को इन विभागों का खर्चा चलाने के लिए वित्त इकट्ठा करने का अधिकार होगा।

B. संघ के लिए कार्यपालिका और विधानमंडल होना चाहिए जिसमें ब्रिटिश प्रांत तथा देशी रियासतों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।

C.भारतीय संविधान को बनाने के लिए एक संविधान सभा स्थापित की जाएगी। इसके कुल 389 मेंबर होंगे जिसमें सभी भारतीय होंगे।यह मेंबर अलग-अलग प्रांतों तथा देशी रियासतों से उनकी जनसंख्या के अनुसार लिए जाएंगे।

16. मुस्लिम लीग की सीधी कार्रवाई 1946 ईस्वी-

जुलाई 1946 ईस्वी में विधानसभा की करवाई गई चुनावों में कांग्रेस को 211 सीटों तथा मुस्लिम लीग को 73 सीटें प्राप्त हुई थी। कांग्रेस की इस जीत से मुस्लिम लीग बौखला गई। मोहम्मद अली जिन्ना ने भड़काऊ तथा जहरीले भाषण देकर मुसलमानों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काया। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान को बनाने के लिए 16 अगस्त 1946 ईस्वी को सीधी कार्रवाई करने का फैसला ले लिया। जिन्ना के इस भाषण से कोलकाता में बहुत बड़ा दंगा हुआ जिसमें हजारों हिंदुओं की मौत हुई। बहुत जल्द यह धार्मिक फसाद पूरे भारत के प्रांतों में फैल गया। पंजाब में भी हिंसा का पर्यावरण बन गया।

17. अंतरिम सरकार की असफलता-

कैबिनेट मिशन की योजना अनुसार 2 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार की स्थापना की गई। पंडित जवाहरलाल नेहरू को इस सरकार का प्रधान बनाया गया। मुस्लिम लीग ने पहले तोअंतरिम सरकार का बायकाट किया परंतु बाद में शामिल हो गई।इसमें शामिल होकर मुस्लिम भी ने ऐसी नीतियों को अपनाया जिस कारण सरकार को चलाना बहुत मुश्किल हो गया था। इस तरह यहां अंतरिम सरकार की स्थिति काबू से बाहर हो गई तथा यह असफल हो गई।

18. धार्मिक दंगे-

20 फरवरी 1947 ईस्वी को इंग्लैंड के प्रधानमंत्री लॉर्ड एटली ने यह घोषणा की कि 30 जून 1948 तक वह भारत को आजाद कर देंगे। इस घोषणा से उत्साहित होकर मुस्लिम लीग ने अपने पाकिस्तान की मांग को और तेज कर दिया। इस वजह से पंजाब में धार्मिक दंगे अपने शिखर पर पहुंच गई। मुसलमान नारा लगाते थे ‘‘लड़ कर लेंगे पाकिस्तान, मार कर लेंगे पाकिस्तान।’’मास्टर तारा सिंह का जवाब ही नारा था ‘‘काट कर देंगे अपनी जान, मगर देंगे नहीं पाकिस्तान।’’मार्च 1947 में पश्चिमी पंजाब में धार्मिक दंगो में हिंदू तथा सिखों को बहुत नुकसान का सामना करना पड़ा। इससे यह स्पष्ट हो गया के पंजाब का बंटवारा अब होकर ही रहेगा।

19. माउंटबेटन योजना 1947 ईस्वी: - 

भारत की समस्या का हल निकालने के लिए मार्च 1947 ईस्वी में लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का नया वायसराय नियुक्त किया गया। माउंटबेटन ने अलग-अलग राजनीतिक नेताओं से बातचीत करके 3 जून 1947 ईस्वी को एक योजना तैयार की। इस योजना के मुखिया धाराएं निम्नलिखित हैं।

A.भारत को दो भाग भारत और पाकिस्तान में बांटा जाएगा।

B. ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंपने के लिए 1948 ईस्वी तक इंतजार नहीं करेगी । मैं 1939 में ही सत्ता भारत को सौंप देगी।

C.उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत में जनमत संग्रह होगा कि वह भारत में शामिल होना चाहते हैं या पाकिस्तान में।

20. पंजाब का बंटवारा 1947 ईस्वी:

 माउंटबेटन की योजना के अनुसार भारत को दो हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। यह भी फैसला किया गया पंजाब और बंगाल का भी बंटवारा होगा।इस योजना के आधार पर जुलाई 1947 ईस्वी को ब्रिटेन पार्लिमेंट में एक एक्ट पास किया गया। इस एक्ट के अनुसार 15 अगस्त 1947 ईस्वी को दो स्वतंत्र देश भारत और पाकिस्तान में बंटवारे का ऐलान किया गया। पंजाब के बंटवारे के संबंध में मिस्टर साइरिल रेडक्लिफ के अधीन 30 जून 1947 ईस्वी को एक सीमा कमीशन नियुक्त किया गया। इस कमीशन ने सरकार को अपनी रिपोर्ट 12 अगस्त 1947 ईस्वी को पेश की।इस रिपोर्ट के अनुसार पंजाब का 2 भाग पूर्वी पंजाब तथा पश्चिमी पंजाब में बांट दिया गया।




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